वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. महात्मा गाँधी ने किस पत्र का संपादन किया ?
(क) कामनवील (ख) यंग इण्डिया
(ग) बंगाली (घ) बिहारी
2. किस पत्र ने वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए अपनी भाषा बदल ली ?
(क) हरिजन (ख) भारत मित्र
(ग) अमृतबाजार पत्रिका (घ) हिन्दुस्तान रिव्यू
3. 13 वीं सदी में किसने ब्लाक प्रिंटिंग के नमूने यूरोप में पहुंचाए ?
(क) मार्कोपोलो (ख) निकितिन
(ग) इत्सिंग (घ) मेगास्थनीज
4. गुटेनवर्ग का जन्म किस देश में हुआ था ?
(क) अमेरिका (ख) जर्मनी
(घ) जापान (घ) इंग्लैण्ड
5. गुटेनवर्ग ने सर्वप्रथम किस पुस्तक की छपाई की ?
(क) कुरान (ख) गीता
(ग) हदीस (घ) बाइबिल
6. इंग्लैण्ड में मुद्रणकला को पहुँचाने वाला कौन था ?
(क) हैमिल्टन (ख) कैक्सटन
(ग) एडिसन (घ) स्मिथ
7. किसने कहा ''मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा''?
(क) महात्मा गाँधी (ख) मार्टिन लूथर
(ग) मुहम्मद पैगम्बर (घ) ईसा मसीह
8. रूसो कहाँ का दार्शनिक था ?
(क) फ़्रांस (ख) रूस
(ग) अमेरिका (घ) इंग्लैण्ड
9. विश्व में सर्वप्रथम मुद्रण की शुरुआत कहाँ हुई ?
(क) भारत (ख) जापान
(ग) चीन (घ) अमेरिका
10. किस देश की सिविल सेवा परीक्षा ने मुद्रित पुस्तकों की माँग बढाई ?
(क) मिस्त्र (ख) भारत
(ग) चीन (घ) जापान
उत्तर- 1. → (ख), 2. → (ग), 3. → (क), 4. → (ख), 5.→ (घ), 6. → (ख), 7. → (ख), 8. → (क), 9. → (ग), 10. → (ग) ।
रिक्त स्थानों को भरें
1. 1904-05 के रूस-जापान युद्ध में ............ की पराजय हुई।
2. फिरोज शाह मेहता ने ........... का संपादन किया।
3. वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट ............ ई० में पास किया गया।
4. भारतीय समाचार पत्रों के मुक्तिदाता के रूप में ............. को विभुषिका किया गया।
5. अल-हिलाल का संपादन ........... ने किया।
उत्तर- 1. रूस, 2. बाम्बे कानिकल, 3. 1878, 4. चार्ल्स मेटकाफ, 5. मौलाना आजाद।
सुमेलित करें
समूह 'क' |
समूह 'ख’ |
(i) जे० वे० हिक्की (ii) राममोहन राय (iii) बाल गंगाधर तिलक (iv) केशवचन्द्र सेन (v) सुरेन्द्र नाथ बनर्जी |
(क) संवाद कौमुदी (ख) बंगाली (ग) बंगाल गजट (घ) मराठा (ङ)सुलभ समाचार |
उत्तर - (i) → (ग), (ii) → (क), (iii) →(घ), (iv) →(ङ), (v) →(ख)।
(क) छापाखाना, (ख) गुटेनवर्ग, (ग) बाइबिल, (घ) रेशम मार्ग, (ड) मराठा, (च) यंग इंडिया, (छ) वर्णाक्युलर प्रे एक्ट, (ज) सर सैयद अहमद, (झ) प्रोटेस्टेंटवाद, (ञ) मार्टिन लूथर।
उत्तर - (क) छापाखाना :- छापाखाना का आविष्कार का उतना ही महत्व है जितना आदि मानव द्वारा आग, पहिया और लिपि का। अरब में छापाखाना को अजूबा ही समझा गया। बौद्धिक जगत के लिए गुटेनबर्ग की यह अनुपम देन थी।
(ख) गुटेनवर्ग :- गुटेनबर्ग जर्मनी का रहने वाला था। में आधुनिक छापाखानों का आविष्कारक गुटेनबर्ग को ही माना जाता है। उसी ने टाइप बनाया और छपाई की मशीन भी आगे चलकर ऑपरेशन का क्रम सा विकास होता गया।
(ग) बाइबिल :- बाइबल एक ईसाई धर्म ग्रंथ है। इसी इसे सर्वाधिक पवित्र मानते हैं। गुटेनबर्ग ने जब प्रेस बनाकर छपाई का प्रयोग करना चाहा तो उसने सबसे पहले बाइबल को ही छाप। बाइबल छापना उसने शुभ कर्म माना।
(घ) रेशम मार्ग :- चीन से रेशम का निर्यात यूरोप तक के देशों में होता था। रेशम व्यापार का इतना महत्व था कि जिस मार्ग से होकर यह भेजा जाता था, उसे मार्ग का नाम ही रेशम मार्ग पर गया रेशम मार्ग परिसम एशिया से होकर गुजरता था।
(ड) मराठा :- मराठा एक उम्र विचारों को व्यक्त करने वाला राष्ट्रवादी समाचार पत्र था। इसके संपादक बाल गंगाधर तिलक थे। इसका नाम तो मराठा था, किंतु छपता अंग्रेजी में था।
(च) यंग इण्डिया :- अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित यंग इंडिया एक देशभक्ति पूर्ण राष्ट्रवादी पत्र था। इसके संस्थापक तथा संपादक महात्मा गांधी थे। यह अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होने वाला समाचार पत्र था। इसके लिखो से भारतीय युवक देशभक्ति की शिक्षा लेते थे।
(छ) वर्णाक्युलर प्रेस एक्ट :- वर्नाकुलर प्रेस एक्ट 1878 में लागू हुआ था। यह एक्ट केवल भारतीय भाषाओं में प्रकाशित समाचार पत्रों पर लागू होता था। इसी एक्ट से बचने के लिए बंगाल में प्रकाशित होने वाला समाचार पत्र अमृत बाजार पत्रिका को अंग्रेजी भाषा में छप जाने लगा।
(ज) सर सैयद अहमद :- सर सैयद अहमद ईस्ट इंडिया कंपनी में एक की रानी थे। अंग्रेजो ने हिंदू मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए एक कट्टर मुसलमान की आवश्यकता थी। क्योंकि 57 के गदर में हिंदू मुस्लिम एकता परिवहन पर थी। सैयद साहब अंग्रेजों के इशारे पर चलते रहे, जिससे उन्हें सारे की उपाधि से नवाजा गया।
(झ) प्रोटोस्टेंटवाद :- प्रोटेस्टेंट अवार्ड का संचालन मार्टिन लूथर था। वह पाप और पादरियों के चरित्र में आई गिरावट से छुपता था। इसी का फल हुआ कि ईसाई धर्म दो खेमों में बट गया। मूल खेमा कैथोलिक कल आया और इसका प्रोटेक्ट करने वाला खेमा प्रोटेस्टेंट कहलाया।
(ञ) मार्टिन लूथर :- मार्टिन लूथर जर्मनी का एक धर्म सुधारक था। यह पाप और पादरियों के चरित्र में आए गिरावट से शुद्ध था। जिस कारण उसे धर्म सुधारक आंदोलन चलाना पड़ा इसमें उसे सफलता मिली थी। एक और पाप को तो अपने में सुधार लाना पड़ा और दूसरी ओर ईसाई धर्म के दो फांक हो गए।
प्रश्न 2. निम्नांकित प्रश्नों के उत्तर 60 शब्दों में लिखें
प्रश्न (क) गुटेनबर्ग ने मुद्रण यंत्र का विकास कैसे किया?
उत्तर :- वर्ग के परिवार के पास जैतून से तेल निकालने की मशीन थी। उसने इस मशीन में कुछ हेर फेर करके मुद्रण यंत्र का विकास कर लिया। टाइप के लिए तीन चार धातुओं का मिश्रण बना टाइप बनाएं पहले अक्षरों के मॉडल बनाया और उन मंडों के सहारे टाइप की ढलाई की गई। अंग्रेजी में चुकी अक्षरों की संख्या बहुत कम है। अतः टाइप बनाना आसान हो गया। फिर उसने छपाई योग्य स्याही भी बना ली। इस प्रकार कुछ दिनों के परिश्रम के बाद वह मुद्रण यंत्र बनाने को विकसित करने में सफल हो गया।
प्रश्न (ख) छापाखाना यूरोप में कैसे पहुंचा ?
उतर :- कहा जाता है छापाखाना को यूरोप पहुंचाने वाला मार्कोपोलो था,जो अपनी यात्रा के क्रम में चीन पहुंचा था। लेकिन उसके पहले ही व्यापारियों द्वारा रेशम मार्ग में छापाखाना यूरोप पहुंच चुका था। वहां छापाखाना का उपयोग ताश और धार्मिक चित्र बनाने में करते थे। लेकिन मार्कोपोलो ने छापेखाने के साथ ही लकड़ी के टाइप भी भेजे। जर्मनी में कागज का आविष्कार 1336 में हो गया। इसके बाद तो छपाई का काम तेजी से बढ़ने लगा, क्योंकि छापेखाने की मशीन गुटेनवर्ग ने पहले ही बना ली थी।
प्रश्न (ग) इन्क्ववीजीशन आप क्या समझते हैं इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
उतर: - इन्कवीजीशन वह कार्यालय था, जिसके माध्यम से कैथोलिक चर्च के पादरियों ने धर्म-सुधार की कार्रवाइयों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया। बाइबिल की मुद्रित प्रतियों के मिलने से कम पढ़े-लिखे लोग भी बाइबिल भारत की मुद्रित प्रशन के मिलने से कम पढ़े लिखे लोग भी बाइबिल में उल्लिखित बातों का अपने मतानुसार अलग-अलग अर्थ निकालने लगे। उनकी व्याख्या भी वे अपने ढंग से करते थे ,जो चर्च की मान्यताओं के विरुद्ध जाते थे। अपनी जमी-जमाई दुकानदारी को नष्ट होने से बचने के लिए कैथेलिक चर्च वालों में इन्कवीजीश को चालू किया लेकिन इसमे धर्म सुधार आंदोलन रुक नहीं ,वरन जोर से पकड़ने लगा।
प्रश्न (घ) पाण्डुलिपि क्या है इसकी क्या उपयोगिता है?
उतर:- पाण्डुलिपिय हस्तलिखित उसे पुस्तक या सामग्री को कहते हैं ,जिसे देखकर आधुनिक काल में कंपोज होता है और छपाई होती है। जब मुद्रण यंत्र की सुविधा नही थी तब विश्व में अकेला देश भारत ही था, जहां अत्यंत स्थाई और महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गई। रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद आदि पांडुलिपियां ही थी ,जो बाद पुस्तक मैं पुस्तक के रूप में मुद्रित की गई। पहले तालपत्रोंलाल पत्रों तथा विभिन्न प्राकृतिक उपकरणों पर लिखी जाती थी। पांडुलिपि की पुस्तक उपयोगिता है कि यह हजारों लाखों वर्ष तक सुरक्षित रखी जा सकती है या इसमें लाखों लाख पुस्तक के छापी जा सकती है।
प्रश्न (ड)लार्ड लिटन ने राष्ट्रीय आंदोलन को गतिमान बनाया। कैसे?
उत्तर:- 1910 में लॉर्ड लिटन ने 1878 के एक्ट के सभी घिनौने प्रावधानों को पुनः लागू कर दिया । देश में इसकी घोर प्रतिक्रिया हुई ।यह वह कल था,जब कांग्रेस में नरम दल और गरम दल अलग-अलग राग अपनाने में व्यस्त थे। लॉर्ड लिटन के कानून से सभी राष्ट्रवादी एक स्वर में बोलने लगे। राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई संजीवनी मिल गई ।1921 में तेज बहादुर सप्रू की आधा यह चिता अध्यक्षता में एक प्रेस कमिटी बनी।इसकी सिफारिश पर 1910 के अधिनियम को रद्द कर देना पड़ा। इसी कारण कहा जाता है कि लॉर्ड लिटन ने राष्ट्रीय आंदोलन को गतिमान बनाए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)
प्रश्न (क) मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ।
उत्तर:- मुद्रा क्रांति ने आधुनिक विश्व को अनेक प्रकार से प्रभावित किया। सबसे पहले तो अनपढ़ जनता पढ़ने की और उन्मुख हुई।कारण की पढ़े-लिखे लोग ही मुदित पुस्तकों को पढ़ सकते थे और उनसे लाभ उठा सकते थे।
मुद्रण क्रांति ने तो सर्वप्रथम धर्म को प्रभावित किया। उसी समय यूरोप में धर्म सुधार आंदोलन चल रहा था। मुद्रण की सुविधा प्राप्त होते ही उसमें और भी तेजी आ गई ।बाइबिल के संस्करण पर संस्करण प्रकाशित होने लगे। इसको खरीदने और पढ़ने वालों की संख्या बढ़ने लगी।
सबसे बड़े धर्म सुधारक और जर्मनी का मार्टिन लूथर ने तो यहां तक की कहा कि-" मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है,सबसे बड़ा तोहफा है।'' छपाई के काम से नए बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ एवं धर्म सुधार आंदोलन के नए विचारों का फैलाव तेजी से हुआ और वह आम जन तक आसानी से पहुंचने लगा।
मुद्रण कला की तकनीकी विकास भी तेजी से हुआ। अब बिजली से चलने वाले बेलनाकार मशीनीभी बाजार में आ गईं ।यहां तक की ऑफसेट में बहुरंगी छपाई भी होने लगी। अब प्रेस केवल धर्म प्रचार का ही साधन नहीं रहा ,बल्कि ज्ञान- विज्ञान तथा विचारों का फैलाव भी तेजी से हुआ।
भारत में तो मुद्रण क्रांति ने राजनीति को पूरी तरह अपने लपेटे में ले ली। राष्ट्रीय आंदोलन को फैलाने में बहुत मदद मिली। देश में अनेक राष्ट्रवादी अखबार छपने लगे। पाठकों की संख्या भी बढ़ने लगी ।राष्ट्रवादी नेता अपने विचार अखबारों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचने लगे याद यद्यपि कि सरकारी नजर सदैव टेढ़ी ही रहती थी। अनेक तरह के कानून लादे गए। अड़चनें लगाई गईं। वास्तव में सही रूप से राष्ट्रवादी और त्यागी ही अखबार निकाल सकते थे और संपादन कर सकते थे।
प्रश्न (ख) 19वीं सादी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करे।
उत्तर:- भारत में समाचार पत्रों का उदय 19वीं सदी की एक महत्वपूर्ण विशेषता है ।यह न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलने वाला अनिवार्य शैक्षणिक स्रोत बन गया, बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उनकी नीतियों, उनके शोषण के विरुद्ध जागृति लाने एवं देश प्रेम की भावना भरकर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला बन गया।
1816 में गंगाधर भट्टाचार्य ने साप्ताहिक बंगाल गजट निकाला तो 1818 में ब्रिटिश व्यापारियों ने कलकाता जनरल निकाला । इस समाचार पत्रों ने लाड हेस्टिंग और जॉन एडमून को उलझन में डाल दिया। इस पत्र के संपादक बकिंघम ने पत्रकारिता के माध्यम से प्रेस को जनता तक पहुंचा दिया। इसने प्रेस को आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने ,जांच पड़ताल करके समाचार देने तथा नेतृत्व प्रदान करने की और प्रवृत किया। परिणाम हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने इन्हें इंग्लैंड भेज दिया।
1821 में बांग्ला भाषा में संम्वाद कौमुदी' तथा 1822 में फारसी भाषा में मिरातुला'अखबार निकाला। इसके साथ ही प्रगतिशील राष्ट्रवादी प्रकृति के समाचार पत्रों का तांता लग गया। उपर्युक्त दो पत्रों के संपादक बंगाल के प्रकाणड विद्वान राजा राममोहन राय थे। इन्होंने अखबारों को सामाजिक तथा धार्मिक सुधार आंदोलनों का हथियार बना दिया। 1822 में मुंबई से गुजराती भाषा में दैनिक मुंबई' समाचारपत्र निकलता तो 1831 में 'जामे जमशेद', 1851 में 'गोफ्तार तथा 'अखबारे सौदागर ,का प्रकाशन हुआ।
1857 के विद्रोह के पश्चात समाचार पत्रों की प्रकृति का विभाजन प्रांतीय आधार पर किया जा सकता है। भारत में दो प्रकार के प्रेस थे: एक एंग्लो इंडियन तथा दूसरा भारतीय प्रेस एंग्लो इंडियन प्रेस। एंग्लो इंडियन प्रेस में पत्र छपते थे: वे 'फूट डालो और शासन करो' के तर्ज पर थे, जबकि भारतीय प्रेस मेल-मिलाप और राष्ट्रीयता से ओत -प्रोत थे।
1858 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने 'सोम प्रकाश' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला ,जो बंगाल में थे ।हिंदू पेटि्एट को भी विद्यासागर ने ले लिया। ऐसे ही अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन होता रहा।
प्रश्न(ग) भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर:- भारतीय समाचार पत्रों को राष्ट्रीय आंदोलन के प्रचार के हथियार के रूप में एनीबेसेंट ने इस्तेमाल करना शुरू किया इन्होंने मद्रास स्टैंडर्ड को अपना संचालन में लेकर 'न्यू इंडिया' नाम देकर होम रूल का नारा जन-जन तक पहुंचाया महात्मा गांधी केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं थे, बल्कि एक कुशल पत्रकार भी थे ।उन्होंने यंग इंडिया तथा हरिजन पत्रों के माध्यम से अपने विचारों एवं राष्ट्रीयवादी आंदोलन का प्रचार- प्रसार किया।भारतीय प्रेस गांधीजी के व्यक्तित्वों और व्यक्तित्व से निर्भीक बनने लगे।
मोतीलाल नेहरू ने 1919 में इंडिपेंडेंस', शिव प्रसाद गुप्त ने 'आज', के० एम ०पा पान्निकर ने 1922 में हिंदुस्तान टाइम्स का संपादन किया। बाद में हिंदुस्तान टाइम्स का संपादन कार्य मदन मोहन मालवीय के हाथ में आ गया। बाद में घनश्याम दास बिड़ला ने इस पत्र को खरीद लिया। समाजवादी-साम्यवादी विचारों के फैलाव के परिणामस्वरूप मराठी साप्ताहिक क्रांति,वर्कर्स एंड पीजेंट्स पार्टी आफं इंडिया का प्रतिनिधित्व कर रहा था। अंग्रेजी साप्ताहिक न्यू स्पार्क, कांग्रेस सोशलिस्ट क्रमशः र्मार्क्सवादी एवं समाजवादी विचारों के पोषक थे।एम ०एन० राय ने अंग्रेजी साप्ताहिक 'इंडिपेंडेंस', 1930 में सदानंद के संपादन में 'दि फ्री प्रेस जनरल'का प्रकाशन आरंभ हुआ मद्रास में स्वराज तथा गुजरात में नवजीवन का प्रकाशन हुआ।
1910 -20 के मध्य उर्दू पत्रकारिता का भी खूब विकास हुआ।मौलाना आजाद के संपादन में 1912 में अलहिलाल तथा 1913 में 'अल बिलाग'का प्रकाशन हुआ।मोहम्मद अली ने अंग्रेजी में 'कामरेड, तथा उर्दू में 'हमदर्द' का प्रकाशन किया। 1910 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने कानपुर से प्रताप का प्रकाशन शुरू किया यह पत्र राष्ट्रवाद तथा किसान मजदूर का जबरदस्त समर्थन था हर दयाल ने 1913 में गदर का प्रकाशन सेन फ्रांसिस्को से कानाराम किया 1914 से पंजाबी में भी इसका प्रकाशन हुआ विदेश में रहने वाले भारतीयों के बीच यह पत्र काफी लोकप्रिय हुआ।
प्रश्न (घ) राष्ट्रिय आन्दोलन को भारतीय प्रेसों ने कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर- भारत के राष्ट्रिय आन्दोलन के सभी पक्षों, चाहे वह राजनीति हो, चाहे सामाजिक हो, चाहे आर्थिक हो, प्रेस ने प्रत्यक्ष रूप से सबको प्रभावित किया। राष्ट्रिय नेताओं ने प्रेस के माध्यम से ही अंग्रेजी राज की शोषणकारी नीतियाँ का प्रर्दाफास किया। इस क्रम में उन्होंने देश में जागृति फ़ैलाने का भी काम किया। विदेशी सत्ता से त्रस्त जनता को सन्मार्ग दिखाने एवं साम्राज्यवाद के विरोध में निडर होकर स्वर उठाने का साहस प्रेसों के मध्ये से ही प्राप्त हुआ।
भारतीय राष्ट्रिय आन्दोलन के प्रारंभ से पहले समाचार पत्र ही देश में लोकमत का निर्माण भी करते थे और प्रतिनिधित्व भी करते थे। देश भक्तों ने लाभ या व्यापारिक उद्देश्य से पत्रकारिता को नहीं अपनाया, बल्कि इसे मिशन के रूप में अपनाया। चंदा और दान इनकी पूंजी थी। उन्होंने समाचारपत्रों ने राजनीतिक शिक्षा देने का भी काम किया। अधिकतर समाचारपत्रों का रूप कांग्रेस का याचनावादी नीतियाँ से भिन्न थी। ये गरमदल का प्रतिनिधित्व करते थे और उन्ही के स्वर को उजागर करते थे। सालों भर कांग्रेस अधिवेशनों में पारित प्रस्तावों की चर्चा होती रहती थी।
नई शिक्षा निति के प्रति व्यापक असंतोष को सरकार के कानों तक पहुँचाने का काम समाचार पत्रों ने ही किया। फिरंगियों द्वारा हो रहे भारत के आर्थिक शोषण को इन्होने ही उजागर किया और करते रहे। देश की आर्थिक दुर्दशा का चित्रण भी प्रेस या समाचार पत्र ही करते थे। भारत मित्र नामक समाचार पत्र ने भारत से चावल के निर्यात का विरोध किया। अधिकांश समाचार पत्रों का कहना था की भारत की वास्तविक समस्या राजनीति से बढ़कर आर्थिक थी। गाँवों में कृषकों तथा दस्तकारों की हालत अत्यंत शोचनीय थी। वे सदा कर्ज के बोझ तले दबे रहते थे।
प्रश्न (ङ) मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित कीजिए। यह आधुनिक रूप में कैसे पहुँचा ?
उत्तर- आज विश्व ने जो प्रगति की है, उसकी जड़ में प्रेस-संस्कृति ही रही है। यदि प्रेस का विकास नहीं हुआ रहता तो आज न तो वैज्ञानिक पुस्तकें उपलब्ध हो पति और न ही विज्ञान की उन्नति हो पाती है। लेकिन हमें यह नहीं भुलना चाहिए की प्रेस-संस्कृति को आज की स्थिति में पहुँचाने के लिए प्रबुद्ध लोगो को कितने पापड़ बेलने पड़े थे। तालपत्रों पर हाथ से लिखने के बाद कागज़ पर लिखकर पुताकें तैयार होने लगी। कागज़ का अविष्कार चीन में हुआ लेकिन मुद्रण का शुरुआत यूरोप में हुआ। चीनी बौद्ध प्रचारकों ने जापान में मुद्रण कला को पहुँचाया तो यूरोप में मार्कोपोलो ने मुद्रणकला को पहुँचाया। वह इसे चीन से ही ले गया था। जर्मनी में गुटेन्बर्ग ने पहली मुद्रण मशीन बनाई। बाद में जर्मनी में ही बेहतर मुद्रण मशीनें बनी। जर्मनी से ये पुरे यूरोप और बाद में भारत तथा अन्य देशों में पहुँच गयी। पहले तो धार्मिक पुस्तके ही छपीं, बाद में आधुनिक विद्वानों के विचार छपने लगे। इससे समाज के दबे-कुचले दलितवर्ग में चेतना का संचार हुआ। मुद्रण संस्कृति ने चर्चों के पाखंड को खोला तो राजाओं की मनमानी के विरुद्ध भी जनता को जागृत किया। राजतंत्र के विरुद्ध आन्दोलन हुए और प्रजातंत्र का समर्थन किया गया।
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