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Bihar Board Class 9th History Chapter 4 Long Question Answer | NCERT Class 9 la itihas ki duniya Solution Chapter 4 | बिहार बोर्ड क्लास 9वीं इतिहास अध्याय 4 | विश्व में युद्धों का इतिहास | दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Class 9th History Chapter 4 Long Question Answer  NCERT Class 9 la itihas ki duniya Solution Chapter 4  बिहार बोर्ड क्लास 9वीं इतिहास अध्याय 4  विश्व में युद्धों का इतिहास  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

 IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के क्या कारण थे? संक्षेप में लिखें । 
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के निम्नलिखित कारण थे :
प्रथम विश्वयुद्ध का सबसे प्रमुख कारण था साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा । प्रायः सभी यूरोपीय देश अपने अपने उपनिवेशों को बढ़ाने और उसे स्थायीत्व देने के प्रयास में लगे थे । दूसरा कारण था उग्र राष्ट्रवाद । 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता का संचार उग्र रूप से होने लगा था। सभी एक-दूसरे से आगे निकल जाने का प्रयासरत रहने लगे थे। तीसरा कारण सैन्यवाद की प्रवृत्ति थी। अपने उपनिवेश के प्रसार के और उसे बनाए रखने के लिए सेना ही नितांत आवश्यक थी । फलतः यूरोप में सैन्यवाद जोरों पर था । एक कारण गुटों का निर्माण भी था । संपूर्ण यूरोप गुटों में बँटने लगा । ऐसा कोई देश नहीं था जो किसी-न-किसी गुट से जुड़ा नहीं था। लेकिन गुटों का निर्माणक पद्धति का अगुआ जर्मनी का चांसलर बिस्मार्क था । जो दो प्रमुख गुट थे वे थे(i) ट्रिपल एलायन्स और (ii) ट्रिपलएतांत । सब यूरोपीय देश इनमें से किसी न किसी एक गुट से जुड़ा था । ट्रिपल एलायन्स को हिन्दी में त्रिगुट कहते थे, जिसमें जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी प्रमुख भूमिका निभा रहे थे तो ट्रिपल एतांत को हिन्दी में त्रिदेशीय संधि कहते थे। इसमें भी तीन ही देश थे, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस। उपर्युक्त सारी बातों ने ऐसी स्थिति बना दी कि युद्ध कभी भी, किसी भी समय भड़क सकता था । । हुआ भी ऐसा ही । एक छोटी-सी घटना ने युद्ध को भड़का दिया ।
प्रश्न 2. प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध का मुख्य परिणाम हुआ कि 'त्रिगुट देशों' की करारी हार हुई । विश्व में ऐसे भयानक युद्ध फिर कभी नहीं हो, इसके लिए राष्ट्रसंघ नामक विश्व संगठन की स्थापना की गई। लेकिन इस विश्व संस्था में कुछ विसंगतियाँ भी थीं। इसके गठन में मुख्य हाथ अमेरिका का था, लेकिन वह स्वयं इसका सदस्य नहीं बना | सबसे महत्वपूर्ण तो थी वर्साय की संधि । इस संधि के तहत हारे हुए देशों को तरह-तरह से दबाया गया। सबसे अधिक जर्मनी पर प्रति ध लगा । एक तो उसे जीते हुए सभी क्षेत्र 'उससे छिन लिए गए और दूसरे कि स्वयं उसके अपने देश के कुछ भागों पर भी विजयी राष्ट्रों ने अधिकार जमा लिया । ये भाग ऐसे थे जो खनिजों में धनी थे । वर्साय की संधि में ऐसी-ऐसी बातें थीं कि भविष्य में जर्मनी कभी सर उठाने का साहस ही न कर सके । उस संधि पर उससे जबरदस्ती हस्ताक्षर कराया गया था । संधि के अनुसार उसकी सैन्य शक्ति को सीमित कर दिया गया। उस पर भारी जुर्माना लगाया गया। जुर्माना इतना अधिक था कि वह उसे अदा ही नहीं कर पा सकता था। सबसे अधिक लाभ में फ्रांस था| फ्रांस को उसका अल्सास-लारेन क्षेत्र तो लौटा ही दिया गया जर्मनी के सार क्षेत्र के कोयला खदानों को 15 वर्षों के लिए फ्रांस को दे दिया गया। डेनमार्क, बेल्जियम पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, जिसे जर्मनी ने जीत रखा था, सब उसके हाथ से निकल गए। जर्मनी के सम्पूर्ण उपनिवेशों को विजयी देशों ने आपस में बाँट लिया । एक प्रकार से। जर्मनी की कमर ही तोड़कर रख दी गई। अपमानजनक संधि का ही परिणाम था कि जर्मनी में हिटलर और इटली में मुसोलिनी जैसे कठोर मिजाज शासकों का उदय हुआ और देश की जनता से उन्हें सम्मान भी मिला । मुख्य परिणाम यह हुआ कि प्रथम विश्वयुद्ध का बदला चुकाने के लिए ही द्वितीय विश्वयुद्ध का आरम्भ हुआ।
प्रश्न 3. क्या वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी ?
उत्तर – हाँ, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी । इसका प्रमाण है कि संधि के प्रावधानों को निश्चित करने के समय विजीत देशां के किसी भी प्रतिनिधि को नहीं बुलाया गया । प्रावधान निश्चित करते समय निर्णयी देशां ने मनमाना प्रावधान निश्चित किए । जर्मनी के विजित देशों को तो ले ही लिया गया, उसके अपने कोयला क्षेत्र को 15 वर्षों के लिए फ्रांस को दे दिया गया। उसके राइन क्षेत्र को सेना- मुक्त क्षेत्र बना दिया गया। उसकी सैनिक क्षमता में भी कटौती कर दी गई 1 उसके उपनिवेशों को फ्रांस और ब्रिटेन दोनों ने मिलकर आपस में बाँट लिए । दक्षिणपश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका स्थित जर्मन-उपनिवेश ब्रिटेन, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका और पुर्तगाल को दे दिए गए। युद्ध में त्रिदेशीय संधि के देशों के जो व्यय हुए थे, वे सब जुर्माना के रूप में जर्मनी से वसूला गया । 6 अरब 10 करोड़ पौंड उस पर जुर्माना लगाया गया । जर्मनी के सहयोगियों के साथ अलग से संधियाँ की गई । आस्ट्रिया-हंगरी को बाँटकर अलग-अलग दो देश बना दिया गया। आस्ट्रिया से जबरदस्ती हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया और पोलैंड की स्वतंत्रता को मान्यता दिलवाई गई । तुर्की साम्राज्य को बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया गया । यह बात अलग है कि तुर्की के मुस्तफा कमाल पाशा तथा जर्मनी के हिटलर ने इन संधियों को मानने से इंकार कर दिया । इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि वर्साय की संधि सहमतिवाली संधि न होकर जबदरदस्ती आरोपित की गई संधि थी ।
प्रश्न 4. बिस्मार्क की व्यवस्था ने प्रथम विश्वयुद्ध का मार्ग किस तरह प्रशस्त किया ?
उत्तर – यूरोप के देश अपने उपनिवेशों के विस्तार तथा स्थायित्व के लिए चिंतित रहा करते थे। इसके लिए शक्तिशाली देश अपने-अपने हितों के अनुरूप गुटों के गठन में लग गए। फल हुआ कि पूरा यूरोप दो गुटों में बँट गया । यूरोप का रूप सैनिक शिविरो में बदलने लगा । लेकिन सही पूछा जाय तो यूरोप में गुटों को जन्मदाता जर्मनी के चांसलर बिस्मार्क को मानना पड़ेगा। इसी ने सर्वप्रथम 1879 में आस्ट्रिया-हंगरी से द्वेध संधि की थी । यह क्रम यहीं नहीं रूका। 1882 में क त्रिगुट (ट्रिपल एलाएंस) बना जिसको गठित करनेवाला बिस्मार्क ही था। इस त्रिगुट थे तो अनेक देश लेकिन प्रमुख जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी थे। बिस्मार्क ने इसका गठन फ्रांस के विरोध में किया था। त्रिगुट में शामिल इटली पर बिस्मार्क कम विश्वास करता था, क्योंकि वह जनाता था कि वह त्रिगुट में केवल इसलिए सम्मिलित हुआ है कि उसकी मंशा मात्र आस्ट्रिया-हंगरी के कुछ भागों पर अधिकार तक सीमित थी। फिर त्रिपोली को भी वह जीतना चाहता था, लेकिन इसके लिए उसे फ्रांस की मदद की आवश्ययकता थी। इस कारण बिस्मार्क उस पर कम विश्वास करता था, फिर भी वह गुट का एक प्रमुख सदस्य था। सबको समेट कर साथ रखना बिस्मार्क की हो जिम्मेदारी थी। वह समझता था कि त्रिगुट बना तो है, लेकिन यह एक ढोला-ढाला संगठन हो था। यह सब समझते हुए भी बिस्मार्क को अपनी शक्ति पर भरोसा था। इस प्रकार हम देखते हैं कि बिस्मार्क की व्यवस्था ने हो प्रथम विश्वयुद्ध के विरोध में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने भी त्रिदेशीय संधि के नाम से अलग एक गुट को स्थापना कर ली।
प्रश्न 5. द्वितीय विश्वयुद्ध के क्या कारण थे ? विस्तारपूर्वक लिखें । 
उत्तर – द्वितीय विश्वयुद्ध के निम्नलिखित कारण थे :
(i) वर्साय संधि की विसंगतियाँ-वसांय की संधि में ऐसी-ऐसी शर्तें थी जिन्हें मानना किसी भी देश के बस की बात नहीं थी। 1936 तक तो जैसे-तैसे चलता रहा लेकिन उसके बाद उल्टे विजीत राज्य ही अबतक हुई अपनी हाने को क्षतिपूर्ति की माँग रखने लगे। खासकर जर्मनी के कोयला खदानो का फ्रांस ने जो दोहन किया था, उसके लिए जर्मनी हर्जाना माँगने लगा। पूरा जर्मनी तो अपमानित हुआ ही था लेकिन जैसे ही हिटलर जैसा जुझारू नेता मिला, उसका मनोबल बढ़ गया।
(ii) वचन विमुखता— राष्ट्रसंघ के विधान पर जिन सदस्य राज्यों ने जो वादा किया था, एक-एककर सभी मुकरने लगे। उन्होंने सामूहिक रूप से सबकी प्रादेशिक अखंडता और राजनीति स्वतंत्रता की रक्षा करने का वचन दिया था लेकिन अवसर आने पर पीछे हटने लगे । जापान ने चीन के क्षेत्र मंचूरिया को शिकार बना लिया और दूसरी ओर इटली अबीसीनिया पर ताबड़-तोड़ हमला करता रहा। फ्रांस चेकोस्लोवाकिया का विनाश करता रहा। जब जर्मनी ने पोलैंड पर चढ़ाई कर दी तब फ्रांस और ब्रिटेन की आँखें खुली। उन्होंने हिटलर को रोकना चाहा, फलतः द्वितीय विश्वयुद्ध का आरंभ हो गया ।
(iii) गुटबंदी और सैनिक संधियाँ-गुटबंदी और सैनिक संधियों ने भी द्वितीय विश्वयुद्ध को भड़काने में सहायता को। यूरोप पुनः दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेता जर्मनी और दूसरे गुट का नेता फ्रांस बना । जर्मनी इटली और जापान एक ओर थे तो फ्रांस, इंग्लैंड तथा रूस और बाद में अमेरिका भी दूसरी ओर थे। पहले गुट को धुरी राष्ट्र तथा दूसरे गुट को मित्र राष्ट्र कहा जाता था। इन गुटों के कारण यूरोप का वातावरण विषाक्त बन गया।
(iv) हथियारबंदी-गुटबंदी और सैनिक संधियों ने सभी राष्ट्रों को संशय में डाल दिया। सशस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला। इंग्लैंड ऋण लेकर भी अपने शस्त्रों में विस्तार करता रहा। बहाना आक्रमणो को रोकना था। सभी देशों ने अपने रक्षा व्यय को बढ़ाते जाने में अपना शान समझते थे । नवीन हथियारों का आविष्कार हाने लगा। नौ सेना और वायु सेना में भी बढ़ोत्तरी की जाने लगी। सभी देश अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे।
(v) राष्ट्रसंघ की असफलता— राष्ट्रसंघ निकम्मा साबित होने लगा। कोई भी शक्तिशाली देश उसकी बात मानने को तैयार नहीं था। अनेक छोटे-छोटे राज्यों ने तो उसकी बात मानी और समझौतों का पालन किया लेकिन शक्तिशाली देशों से अपनी बात मनवाने में राष्ट्रसंघ विफल साबित हुआ हर निर्णायक घड़ी में शक्तिशाली देश राष्ट्रसंघ को अँगूठा दिखाने लगे। इस प्रकार राष्ट्रसंघ की असफलता भी द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण बना।
(vi) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी तथा हिटलर मुसोलिनी का उदय - 1929-31 की विश्वव्यापी मंदी ने राष्ट्रों की कमर तोड़कर रख दी थी। इसी समय जर्मनी में हिटलर तथा इटली में मुसोलिनी जैसे जुझारू नेताओं का उदय हुआ। देशवासि को दिलासा दी की वे देश की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर देश को गौरवान्वित कर देंगे। फलतः लोगेिं ने इनका साथ दिया, जिससे द्वितीय विश्वयुद्ध को काफी बल मिला ।
प्रश्न 6. द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का उल्लेख करें । 
उत्तर – द्वितीय विश्वयुद्ध के निम्नलिखित परिणाम हुए :
(i) जन-धन की अपार हानि - इतिहास का यह सबसे विनाशकारी युद्ध सिद्ध हुआ। यूरोप का एक बड़ा भाग कब्रिस्तान में बदल गया । जर्मनी में 60 लाख से अधिक यहूदी यातनापूर्ण ढंग से मारे गए । अमेरिका द्वारा एटम बम के प्रयोग ने दो जापानी नगरों को खाक में मिला दिया । सबसे अधिक नुकसान सोवियत संघ का हुआ । जर्मनी के भी 60 लाख लोग मारे गए। युद्ध का कुल लागत 13 खरब 84 अरब 90 करोड़ डालर का अनुमान लगाया गया ।
(ii) यूरोपीय श्रेष्ठता का अंत तथा उपनिवेशों की स्वतंत्रता — द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय श्रेष्ठता खाक में मिल गई । उनके अफ्रीकी और एशियाई उपनिवेश एक एक कर स्वतंत्र होते गए । भारत, श्रीलंका, बर्मा, मलाया, हिन्देशिया, मिस्र आदि स्वतंत्र हो गए । यह कहावत कि इंग्लैंड के राज्य में कभी सूर्य नहीं डूबता, द्वितीय विश्वयुद्ध ने इसे झूठा साबित कर दिया ।
(iii) इंग्लैंड की शक्ति में ह्रास तथा रूस और अमेरिका का विश्व शक्ति में रूप में उभरना — द्वितीय विश्वयुद्ध का एक परिणाम यह हुआ कि इंग्लैंड शक्तिहीन हो गया और रूस और अमेरिका दोनों देश विश्व शक्ति के रूप में सामने आए। एक समाजवादी था तो दूसरा पूँजीवादी । अतः दोनों में प्रतियोगिता आरंभ हो गई ।
(iv) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना - द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद विश्व शांति को कायम रखने के लिए 'संयुक्त राष्ट्रसंघ' नाम से एक शक्तिशाली संस्था का गठन किया गया । सम्पूर्ण विश्व के लगभग सभी छोटे-बड़े देश इसके सदस्य बनाए गए। परमाणु बम को शांति और अशांति का निर्णायक केन्द्र माना गया । राष्ट्रसंघ के जिम्मे लगाया गया कि कोई देश इसका विकास न कर सके ।
(v) विश्व में गुटों का निर्माण- राजनीति में पहले इंग्लैंड का बोलबाला रहा करता था । अब उसकी शक्ति क्षीण हो गई । अब विश्व - साम्यवादी रूस तथा पूँजीवादी अमेरिक—दो गुटों में बँट गया । इन दोनों से परे भारत के प्रयास से एक तीसरा गुट भी सामने आया, जिसे 'निर्गुट' कहा गया ।

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