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Bihar Board Class 10th Ncert Hindi Book Solution | Btc Hindi Solution Chapter 2 | विष के दांत (नलिन विलोचन शर्मा) | कक्षा 10वीं बिहार बोर्ड हिंदी किताब | अध्याय 2 सभी प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए । 
उत्तर – कहानी कला की दृष्टि से प्रस्तुत कहानी 'विष के दाँत' का शीर्षक सार्थक है, क्योंकि इस कहानी का उद्देश्य मध्यवर्गीय अन्तर्विरोधों को उजागर करना है। जहाँ एक ओर सेन साहब जैसे महत्त्वाकांक्षी तथा सफेदपोश अपने भीतर लिंग भेद जैसे कुसंस्कार छिपाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरी पेशा अनेक तरह की थोपी गई बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाए रखने के लिए संघर्षरत है। यह कहानी सामाजिक भेदभाव लिंग-भेद तथा आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार-दुलार के कुपरिणामों को उभारती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की बानगी पेश करती है। कहानी का शीर्षक 'विष के दाँत' इसलिए भी उपयुक्त है, क्योंकि इसी विष के दाँत अर्थात् काशू के जन्म लेते ही सेन-पुत्रियाँ उपेक्षित हो जाती हैं, मदन मार खाता है तथा गिरधर को नौकरी से हटा दिया जाता है ।
प्रश्न 2. सेन साहब के परिवार में बच्चों के पालन-पोषण में किए जा रहे लिंग आधारित भेद-भाव का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए ।
उत्तर – सेन साहब के परिवार में लड़कियों तथा लड़के के पालन-पोषण के अलगअलग नियम थे । पाँचों लड़कियों के लिए अलग नियम थे, दूसरी तरह की शिक्षा थी और खोखा (पुत्र) के लिए अलग, क्योंकि वह नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा था । लड़कियों को अलग ढंग की तालीम सिखाई गई थी। उनके खेलने-कूदने तथा बोलने पर पाबंदी थी। वे बिना आदेश के घर से बाहर नहीं निकल सकती थीं। वे घर में कठपुतलियों की तरह थीं, जबकि खोखा बुढ़ापे की संतान होने के कारण जीवन के नियम का अपवाद होने के साथ-साथ घर के नियमों का भी अपवाद था । उस पर किसी भी प्रकार की पाबंदी नहीं थी। उसकी हरकत पर सेनसाहब का कहना था कि 'उसे तो इंजीनियर होना है, इसलिए वह अभी से कुछ-न-कुछ जानकारी लेना चाहता है ।' घर में लिंग-भेद ऐसा ही था कि शरारती खोखे की प्रशंसा की जाती थी किंतु तहजीब एवं तमीज की मूर्ति पुत्रियों की चर्चा तक नहीं होती थी ।
प्रश्न 3. खोखा किन मामलों में अपवाद था ?
उत्तर – सेन साहब को पाँच पुत्रियाँ थीं। पुत्र का आविर्भाव तब हुआ जब संतान की कोई उम्मीद बाकी नहीं रह गई थी। अर्थात् सेन साहब को पुत्र तब नसीब हुआ जब पति-पत्नी दोनों बुढ़ापे के अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुके थे। इसलिए खोखा जीवन के नियमों के अपवाद के साथ-साथ घर के नियमों का भी अपवाद था ।..
प्रश्न 4. सेन दंपती खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा की व्यवस्था की थी ?
उत्तर – सेन दंपत्ति खोखा में इंजीनियर बनने की संभावनाएँ देखते थे, क्योंकि वह आखिर उनका बेटा जो था । उसे इंजीनियर बनाने के लिए वैसी ही ट्रेनिंग दी जा रही थी । वे उसे अपने ढंग से ट्रेंड कर रहे थे। उसकी शिक्षा की व्यवस्था यह की गई थी कि कोई कारखाने का बढ़ई-मिस्त्री दो- एक घंटे आकर उसके साथ ठोंक-पीठ किया करे, ताकि उसकी उँगलियाँ अभी से औजारों से वाकिफ हो जायँ ।
प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या कीजिए :
(क) लड़कियाँ क्या हैं, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है ।
व्याख्या – प्रस्तुत गद्यांश महान् साहित्यकार नलिन विलोचन शर्मा द्वारा लिखित कहानी 'विष के दाँत' से उद्धृत है । इसमें लेखक ने सेन साहब की पुत्रियों की विशेषताओं और विवशताओं पर प्रकाश डाला है।
सेन दंपत्ति को पाँच लड़कियाँ हैं— सीमा, रजनी, आली, शेफाली तथा आरती । सभी लड़कियाँ सभ्य तथा शिष्ट हैं। उन्हें अपने माता-पिता से सभ्यता एवं शिष्टता की शिक्षा दी गई हो अथवा नहीं, लेकिन क्या-क्या नहीं करना चाहिए, इसकी उन्हें ऐसी तालीम दी गई है कि लोग देखते ही दंग रह जाते हैं। वे शाम के वक्त दौड़ती-खेलती हैं लेकिन किसी चीज को तोड़तीं फोड़तीं नहीं। इतना ही नहीं, वे खिलखिलाकर हँसती भी नहीं उनके होठों की मुस्कुराहट ऐसी होती है कि सोसाइटी की तारिकाएँ भी सीखने को व्यग्र हो जायँ । 
लेखक के कहने का भाव है कि लड़कियाँ इतनी शालीन हैं कि सेन दंपत्ती गौरवान्वित हैं। उनके यहाँ आने-जाने वालें लोग अपने बच्चों की शरारत पर खीझ कर कहते - तुम लोग फूल का गमला तोड़ने के लिए बने हो और सेन पुत्रियों की सज्जनता की प्रशंसा करने लगते
(ख) खोखा के दुर्ललित स्वभाव के अनुसार ही सेन साहब ने सिद्धांतों को भी बदल लिया था । 
व्याख्या – प्रस्तुत संदर्भ महान् आलोचक एवं साहित्यकार नलिन विलोचन शर्मा विरचित कहानी 'विष के दाँत' पाठ से लिया गया है। इसमें लेखक ने सेन दंपत्ती की लिंग-भेद संबंधी भेदभावपूर्ण नीति पर प्रकाश डाला है।
लेखक का कहना है कि सेन दंपत्ति अपनी पुत्रियों के लिए घर में अलग नियम बनाए हुए थे। उनकी शिक्षा भी भिन्न थी। लड़कियों को सभ्यता एवं शिष्टता की शिक्षा दी गई थी। उनके लिए नियमों का पालन करना आवश्यक था । सेन दंपत्ती अपने को अनुशासन प्रिय मानते थे, किन्तु बुढ़ापे के अंतिम पड़ाव में जब पुत्र ने जन्म लिया तो उनका सिद्धांत बदल गया, क्योंकि वह बेटा था। उसकी हरकत का प्रतिरोध के बदले समर्थन होने लगता था । लेखक ने सेन दंपत्ति की दूषित मानसिकता के माध्यम से यह स्पष्ट करना चाहा है कि दोषपूर्ण सामाजिक परंपरा तथा पुरुष प्रधान सामाजिक व्यवस्था के कारण पुत्र को विशेष महत्त्व दिया जाता है, चाहे वह कुपुत्र ही क्यों न हो, जबकि सर्वगुण सम्पन्न
लड़कियों को हेय दृष्टि से देखा जाता है । इसका कारण यह है कि पुत्रहीन पिता को बुढ़ापे के द्वार पहुँचने के समय पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है ।
(ग) ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुंडे, चोर और डाकू बनते हैं ।
व्याख्या- लेखक का कहना है कि सेन साहब अपनी पत्नी को समझाते हैं कि मदन अपनी माँ की कमजोरी के कारण बिगड़ गया है। गिरधर तो एक सख्त आदमी है। यदि वह इसी प्रकार उसके साथ सख्ती से पेश आता रहा तो मदन के आचरण अथवा हरकत में सुधार हो सकता है, क्योंकि मार के भय से ही आचरण में सुधार होता है । अर्थात् बच्चे को अनुशासन में रखना आवश्यक होता है, किंतु यह नियम सिर्फ साधारण परिवार के बच्चों पर ही लागू होता है। सेन साहब जैसे परिवार के बच्चे यदि गलत भी करते हैं तो उस पर कोई ध्यान नहीं देता, क्योंकि वे धनवान बाप के बेटे होते हैं। तात्पर्य यह कि धन के समक्ष सारे पाप छिप जाते हैं। इसीलिए तो मदन के करूण चीत्कार पर उन्हें दया नहीं आती है, बल्कि नींद भंग होने के कारण खीझ होती है। सेन साहब अपनी निर्दयता का परिचय देते हैं कि "मेरी तो तबीयत हुई थी कि कमबख्त की खाल उधेड़ दूँ ।" लेकिन अपना पुत्र मोटरगाड़ी की पिछली बत्ती का शीशा तोड़ देता है तो उसे उसकी नासमझी कहकर टाल देते हैं ।
लेखक के कहने का तात्पर्य है कि बड़े लोग हृदयहीन होते हैं। उनकी मानवता मर चुकी होती है । वह यह भूल जाते हैं कि हर बच्चा एक समान होता है। उम्र का प्रभाव सब पर एक समान पड़ता है ।
(घ) हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया । 
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्ति कहानीकार नलिन विलोचन शर्मा लिखित कहानी 'विष के दाँत' शीर्षक पाठ से उद्धृत है। इसमें लेखक ने खोखा के बाल स्वभाव का वर्णन किया है । लेखक का कहना है कि बच्चों में मान-सम्मान की भावना नहीं होती। वे खेलप्रिय होते हैं। इसी खेलप्रियता के कारण खोखा उन आवारागर्द छोकरों के पास पहुँच जाता है, जहाँ मदन के साथ अन्य बच्चे बँगले के अहाते की बगलवाली गली में धूल में खेल रहे थे। उन आवारागर्द बच्चों को लट्टू नचाते देखकर खोखा भी खेलने के लिए ललच उठता है। आदत से लाचार वह बड़े रोब के साथ मदन से लट्टू माँगता है, लेकिन एक दिन पूर्व उसके द्वारा अपमानित एवं प्रताड़ित किया गया मदन लट्टू देने से इनकार कर देता है तथा अपने पिता की गाड़ी के साथ खेलने के लिए कहता है । अतः यहाँ लेखक ने यह साबित करना चाहा हे कि गरीब हो या अमीर, सारे बच्चे समान स्वभाव के होते हैं। उनके लिए गरीब-अमीर में कोई अंतर नहीं होता । वे आदत से मजबूर होते हैं । इसीलिए वह वहाँ पहुँच जाते हैं जहाँ उनकी इच्छा की पूर्ति होती है। इसका प्रमाण है कि हंस (खोखा) कौओं (गरीब के बच्चे) की जमात में शामिल होने के लिए ललक रहा है। 
प्रश्न 6. सेन साहब और उनके मित्रों के बीच क्या बातचीत हुई और पत्रकार मित्र ने उन्हें किस तरह उत्तर दिया ।
उत्तर – सेन साहब और ड्राइंग रूम में बैठे उनके मित्रों के बीच बातचीत हुई कि वह अपने पुत्र को अपने ढंग से ट्रेंड करेंगे, क्योंकि वह उसे अपनी तरह बिजनेस मैन या इंजीनियर बनाना चाहते हैं । वहाँ बैठे पत्रकार महोदय से जब उनके बच्चे के विषय में उनका ख्याल पूछा गया, तब उन्होंने उत्तर दिया कि उनका पुत्र जेंटिलमेन जरूर बने और जो कुछ बने या न बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी। पत्रकार महोदय ने उन्हें शिष्टतापूर्ण, किन्तु व्यंग्यात्मक ढंग से उत्तर दिया ।
प्रश्न 7. मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है ?
उत्तर – मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार यह बताना चाहता है कि बड़े लोग सामाजिक भेदभाव के माध्यम से अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं । मदन, उन्हीं के यहाँ काम कर रहे एक किरानी का बेटा है, ड्राइवर भी उन्हीं का नौकर है। ड्राइवर अपने को कर्तव्यपरायण, इंसान तथा जवाबदेह साबित करना चाहता है, जबकि मदन किरानी का पुत्र होने के कारण ड्राइवर को निम्न दृष्टि से देखता है। ऊँचनीच की भावना को व्यक्त करना चाहता है ।
प्रश्न 8. काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण क्या था? इस प्रसंग के द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है ?
उत्तर – काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण गरीबी और अमीरी का भेद था । मदन एक सामान्य किरानी का बेटा है और काशू सेन साहब की नाक का बाल है। काशू के कारण ही पिता ने मदन को मारा-पीटा था। इसी कारण मदन काशू को अपने दल में न तो शामिल करता है और न ही मांगने पर लट्टू ही देता है । फलतः अमीरी में उबाल आ जाती है। काशू मदन को जैसे ही घूँसा मारता है कि द्वन्द्व युद्ध शुरू हो जाता है। यह लड़ाई हड्डी और मांस की, बँगले के पिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई अहाते के बाहर होने के कारण महल की हार होती है । •
लेखक इस प्रसंग के द्वारा यह संदेश देना चाहता है कि सामाजिक फूट के कारण ही गरीबों पर अमीरों का वर्चस्व कायम है। यदि गरीब संगठित हो जायँ तो अमीरों द्वारा किया जाने वाला सारा शोषण स्वतः बन्द हो जाएगा ।
प्रश्न 9. 'महल और झोपड़ी वालों की लड़ाई में अक्सर महलवाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में जब दूसरे झोपड़ी वाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ़ करते हैं।' लेखक के इस कथन को कहानी से एक उदाहरण देकर पुष्ट कीजिए |
उत्तर — प्रस्तुत पंक्तियाँ 'विष के दाँत' शीर्षक पाठ से ली गई हैं, जिसके लेखक नलिन विलोचन शर्मा हैं। इसमें लेखक ने बाल - स्वभाव का बड़ा ही स्वाभाविक चित्रण किया है ।
लेखक का कहना है कि महल तथा झोपड़ीवलों की लड़ाई में महल वाले ही विजयी होते हैं। झोपड़ीवाले अपनी मजबूरी अथवा गरीबी के कारण अपने लोगों का तिरस्कार कर आश्रयदाता की मदद करते हैं क्योंकि उनका स्वार्थ महल वालों से ही सिद्ध होता है । अर्थात् गरीब व्यक्ति अपनी आर्थिक विपन्नता के कारण अपने अन्यायी आश्रयदाता का गुणगान इसलिए करते हैं, ताकि उनकी आजीविका कायम रहे । परन्तु निर्बोध बच्चों को इतनी अक्ल कहाँ कि वे अपने माता-पिता के आश्रयदाता के लाडले की मदद करें और वाहवाही लुटें। बच्चे तो निस्पृह एवं प्रेम के भूखे होते हैं। उन्हें जिससे अपनी आवश्यकता की पूर्ति होती है अर्थात् खेलने-कूदने तथा मौज- मस्ती मनाने में जो साथ देते हैं, वे ही उनके प्रिय होते हैं । मदन अपने साथियों का दबंग नेता था । हर साथी उसके आदेश का पालन करता था । इसी कारण सेन साहब के पुत्र काशू तथा साथी मदन बीच हो रहे द्वन्द्व युद्ध का मजा तो लिया, लेकिन कोई किसी की मदद के लिए आगे नहीं आया । फलतः झोपड़ी वाले की जीत हुई और महल वाले काशू को जान बचाकर भागना पड़ा। इस प्रसंग के माध्यम से लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि इन गरीब बच्चों की भाँति स्वार्थरहित होकर अपना काम करें तो महल वाले सदा पराजित होते रहेंगे ।
प्रश्न 10. रोज-रोज अपने बेटे मदन की पिटाई करने वाला गिरधर मदन द्वारा काशू की पिटाई करने पर उसे दंडित करने की बजाय छाती से क्यों लगा लेता है ?
उत्तर — प्रस्तुत पंक्तियाँ लेखक नलिन विलोचन शर्मा द्वारा रचित 'विष के दाँत' शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इनमें लेखक ने मदन के पिता गिरधर के हार्दिक उद्गार का वर्णन किया है ।
गिरधर सेन साहब की फैक्टरी में किरानी है। उसका बेटा मदन शरारती, परन्तु स्वाभिमानी है । सेन पुत्र काशू महल के बगलवाली गली में लट्टू नचा रहे आवारागर्द बच्चों की जमात में शामिल होना चाहता है। वह मदन से लट्टू माँगता है । मदन लट्टू देने से इन्कार कर देता है। काशू अपना अपमान समझ उसे मार बैठता है। मदन भी अपने अपमान का बदला लेने के लिए उस पर टूट पड़ता है। इस द्वन्द्व युद्ध में सेन पुत्र काशू के दो दाँत टूट जाते हैं । फलतः गिरधर को नौकरी से हटा दिया जाता है । इस बात से दुःखी पिता अपने पुत्र को दंड देना चाहता है किंतु पुत्र के साहसपूर्ण कार्य से उत्साहित, उल्लास तथा गर्व के साथ कह उठता है कि "जो किसी के लिए भी नौकरी से निकाले जाने पर ही मुमकिन हो सकता है ।” अर्थात् लोभ रहित होकर ही कोई अपने अपमान का बदला ले सकता है अथवा अपने स्वाभिमान की रक्षा कर सकता है । तात्पर्य यह कि विष के दाँत टूट जाने के कारण ही उसका आत्मबल बढ़ा कि उसने मालिक की गलत 7 बयानी का प्रतिकार नहीं किया और पुत्र को दंड देता रहा। लेकिन आज वह स्वतंत्र है । इस स्वतंत्रता की घड़ी में उसका हृदय वात्सल्य से लबालब हो जाता है और पुत्र को प्यार से उठाते हुए कहता है— 'शाबाश बेटा! एक तेरा बाप है; और तूने तो, बे, खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले ।' .
प्रश्न 11. सेन साहब, मदन, कशू और गिरधर का चरित्र चित्रण करें । 
उत्तर – सेन साहब – कहानीकार ने मध्यवर्ग के भीतर उभर रही एक ऐसी श्रेणी के विषय में अपना विचार प्रकट किया है जो अपनी महत्त्वाकांक्षा और सफेदपोश के भीतर लिंग-भेद जैसे कुसंस्कार छिपाये हुए है । सेन साहब आत्म प्रशंसक, दिखावटी शानप्रिय तथा भेदभावपूर्ण कुसंस्कार से ग्रसित व्यक्ति हैं। पुत्रियों के लिए इनका नियम अलग था किंतु पुत्र के लिए कुछ और नियम बन जाता है। सुशील पुत्रियों को अनुशासन की बेड़ी में जकड़कर रखते हैं, जबकि शरारती पुत्र की हर गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं तथा अपने मित्रों के बीच उसकी प्रशंसा के पुल बाँधते रहते हैं । वे दोहरी प्रवृत्ति तथा निष्ठुर हृदय के व्यक्ति हैं । इसीलिए किरानी पुत्र की करूण चीत्कार पर प्रसन्न होते हैं तथा कहते हैं 'गिरधर ने ऐसी ही कड़ाई जारी रखी तो शायद ठीक जो जाए।' इतना ही नहीं 'स्पेयर द रॉड एण्ड एस्प्वाइल द चाइल्ड' कहकर यह साबित कर देते हैं कि वह सिद्धांतहीन व्यक्ति हैं। उनका पुत्र मोटरगाड़ी की बत्ती का शीशा तोड़ देता है तथा मिस्टर सिंह की गाड़ी के चक्के की हवा निकाल देता है तो चुप्पी साध लेते हैं । मुस्कुराहट के साथ डांटते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सेन साहब हीन स्वभाव के व्यक्ति हैं ।
मदन – मदन प्रस्तुत कहानी का मुख्य पात्र है। उसी के चारों ओर कहानी घूमती है तथा गति पाती है। यदि कहानी से मदन को निकाल दिया जाए तो कहानी उद्देश्यहीन हो जाएगी । मदन अपने वर्ग का नेता है । वह सामाजिक समानता का पोषक, निर्भीक तथा आत्म सम्मान प्रिय बालक है। इसी कारण वह ड्राइवर की बातों का प्रतिरोध करता है तथा सेन पुत्र काशू को अपने दल में न तो शामिल करता है और न ही उसे लट्टू देता है, बल्कि 'अबे भाग जा यहाँ से !' कहकर अपनी निर्भीकता तथा आत्मसम्मान का परिचय देता है। साथ ही, काशू को घूंसा मारकर उसके दो दाँत तोड़ डालता है। इससे सिद्ध होता है कि मदन कुशल लीडर के साथ-साथ आत्मसम्मान प्रिय एवं साहसी है।
काशू – काशू सेन दंपत्ती की नाउम्मीद बुढ़ापे की संतान है। बुढ़ापे का पुत्र होने के कारण दुर्ललित अर्थात् अबि लाड़ प्यार के कारण बिगड़ा हुआ है। वह उद्दंड एवं शरारती है। पाँचों बहन से छोटा है, फिर भी उन पर हाथ चला देता है। वह किसी की इज्जत करना नहीं जानता । वह अनुशासनहीन और असभ्य है। उसकी शरारत से मेहमान भी तंग हो जाते हैं । निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि मदन इस कहानी का नायक है। उसी के कारण पाँचों बहनें उपेक्षित हैं । मदन दंडित होता है। गिरधर की नौकरी जाती है। सेन साहब को अपना नियम बदलना पड़ता है और दाँत टूटते ही कहानी चरम पर पहुँच जाती है ।
गिरधर- प्रस्तुत कहानी में गिरधर नौकरी पेशा निम्न मध्यवर्गीय समूह का प्रतिनिधित्व करता है। वह अनेक तरह की थोपी गई बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाये रखने के लिए संघर्षरत है । वह आर्थिक मजबूरी के कारण सेन साहब के अन्याय का विरोध नहीं करता, बल्कि अपनी मजबूरी की रक्षा के लिए अपमान का घूँट पीकर रह जाता है । वह सहनशील, कर्मठ तथा दब्बू स्वभाव का है। परन्तु जब मदन की हरकत के कारण नौकरी छूट जाती है तब वह अपना हार्दिक आक्रोश व्यक्त करते हुए कहता है— “शाबाश बेटा । एक तेरा बाप है और एक तू है ! तूने तो खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले । हा हा हा !, इससे स्पष्ट होता है कि उसके हृदय में सेन साहब के विरुद्ध आक्रोश भरा था, लेकिन आजीविका जाने के भय से वह चुप रहता था ।
प्रश्न 12. आपकी दृष्टि में कहानी का नायक कौन है ? तर्कपूर्ण उत्तर दें ।
उत्तर – मेरे विचार से कहानी का नायक सेनपुत्र काशू है, क्योंकि उसी के कारण पाँचों बहनें उपेक्षित हैं। मदन मार खाता रहता है तथा पिता की महत्त्वाकांक्षा तथा सफेदपोशी का पोल खुलता है और कहानी अपने चरम की ओर बढ़ती है। लेखक के अनुसार सेन साहब पुत्र जन्म से पूर्व कुछ और थे, किंतु पुत्र का जन्म होते ही अपने नियमों में बदलाव कर लेते हैं । पुत्र की शरारत को हँसकर टाल देते हैं, क्योंकि वह नाउम्मीद बुढ़ापे की संतान है । तात्पर्य कि घर अथवा बाहर जो भी घटनाएँ घटती हैं, उसके पीछे काशू का ही हाथ होता है। चाहे सेन साहब के नियमों में परिवर्तन की बात हो या मदन की पिटाई की अथवा गिरधर को नौकरी से छुट्टी मिलने की । सारी घटनाओं में काशू ही है। अतः कहानी के आरंभ से अन्त तक काशू छाया रहता है। उसी के मूल की शरारत के कारण कहानी में गतिशीलता आती है। उसी के टूटे दाँतों के कारण कहानी का नामकरण भी 'विष के दाँत' किया जाता है। 
प्रश्न 13. आरंभ से ही कहानीकार का स्वर व्यंग्यपूर्ण है। ऐसे कुछ प्रमाण उपस्थित करें ।
उत्तर – कहानीकार कहानी का आरंभ ही व्यंग्य से करता है, जैसे— "सेन साहब की नई मोटरकार बँगले के सामने खड़ी है— काली चमकती हुई, स्ट्रीमल इंड; जैसे कोयल घोंसले में कि कब उड़ जाए ।" प्रस्तुत संदर्भ के माध्यम से कहानीकार ने सेन साहब की झूठी शान तथा महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति को उजागर किया है। इसी प्रकार "खोखा जीवन के नियम का अपवाद था और यह अस्वाभाविक नहीं था कि वह घर के नियमों का अपवाद हो ।” कहानीकार के ऐसा कहने का उद्देश्य यह है कि सेन साहब को जीवन के अन्तिम पड़ाव में पुत्र जन्म लिया था जिस कारण पुत्र के प्रति विशेष मोह था । इससे उनका लिंगभेद प्रकट होता है, क्योंकि पुत्रियों के लिए घर में अलग नियम थे। आगे सेन साहब की महत्वाकांक्षा की ओर ध्यान आकृष्ट कर कहानीकार ने कहा है— 'खोखा' आखिर अपने बाप का बेटा ठहरा, उसे तो ईजीनियर होना है।' फिर मदन के संबंध में गिरधर को सलाह देते समय सेन साहब कहते हैं— 'स्पेयर द रॉड एण्ड स्प्वाइल द चाइल्ड ।' यहाँ कहानीकार ने सेन साहब की ओर कटाक्ष किया है। यह बात वह अपने पुत्र काशू के साथ नहीं अपनाते । अतः कहानीकार ने महत्वाकांक्षी एवं सफेदपोशी प्रवृत्ति को उजागर करने के लिए व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है । 

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