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Bihar Board Class 7th Hindi Book Chapter 3 | N.C.E.R.T. Ka Hindi Kitab | All Question Answer | पुष्प की अभिलाषा (माखन लाल चतुर्वेदी) | बिहार बोर्ड कक्षा 7वीं हिंदी किताब अध्याय 3 | सभी प्रश्नों के उत्तर

Bihar Board Class 7th Hindi Book Chapter 3  N.C.E.R.T. Ka Hindi Kitab  All Question Answer  पुष्प की अभिलाषा (माखन लाल चतुर्वेदी)  बिहार बोर्ड कक्षा 7वीं हिंदी किताब अध्याय 3  सभी प्रश्नों के उत्तर
SM STUDY POINT
पाठ से :
प्रश्न 1. निम्नलिखित पंक्तियों के भावार्थ स्पष्ट कीजिए ।
चाह नहीं सम्राटों के शव पर 
हे हरि, डाला जाऊँ ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ । 
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियां राष्ट्रवादी कवि माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता 'पुष्प की अभिलाषा' शीर्षक पाठ से उद्धत है इनमें कवि ने देशभक्तों के निस्वार्थ देश प्रेम की भावना पर प्रकाश डाला है। 
कवि का कहना है कि देशभक्त अपनी मातृभूमि के आन बान शान की प्राप्ति के लिए किसी भी सम्मान से सम्मानित होना नहीं चाहता है बल्कि अपने आप को मातृभूमि की बलिवेदी पर न्योछावर कर अपना जीवन धन्य बनाना चाहता है तात्पर्य यह कि जिस प्रकार सम्राटों के शव पर या देवताओं के ऊपर चढ़ाए जाने की अभिलाषा नहीं है उसी प्रकार देश भक्त किसी पद तथा प्रतिष्ठा अभिलाष नहीं है उनकी प्रबल इच्छा तो मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सारे सुखों को त्याग कर स्वतंत्रता संग्राम का अलग जगाना है आज के संदर्भ में कहा जाए तो वास्तविक देश भक्त गरीबों को दूर जून उपलब्ध कराना चाहता है कि अपनी झोली भरना । 
प्रश्न 2. प्रस्तुत पाठ में 'मैं' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है? 
उत्तर – प्रस्तुत पाठ में 'मैं' शब्द क प्रयोग देशभक्तों (कवि) के लिए किया गया है । 
प्रश्न 3. "हे वनमाली, मुझे तोड़कर उस रास्ते पर फेंक देना, जिस रास्ते से होकर अपनी मातृभूमि पर शीश चढ़ाने वाले वीर जाते हैं।" उपर्युक्त भाव पाठ की जिन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त होती है उन पंक्तियों को लिखिए । 
उत्तर – मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक । मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक ।
प्रश्न 4. "भाग्य पर इठलाऊँ" का कौन-सा अर्थ ठीक लगता है ? 
(क) भाग्य पर नाराज होना
(ख) भाग्य पर गर्व करना
(ग) भाग्य पर विश्वास न करना 
उत्तर – (ख) भाग्य पर गर्व करना ।
पाठ से आगे :
प्रश्न 1. बड़े-बड़े सम्मान पाने की बजाय पुष्प उस पथ पर फेंका जाना क्यों पसंद करता है, जिस पर मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले वीर जाते हैं? अपना विचार व्यक्त कीजिए ।
उत्तर – बड़े-बड़े सम्मान पाने की बजाय पुष्प उस पथ पर फेंका जाना इसलिए अधिक पसंद करता है, क्योंकि जिस पथ पर मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले वीर जाते हैं, वह पथ सच्ची देशभक्ति का पथ होता है। उस पथ पर चलने वाला राही सदा के लिए अमर हो जाता है। उसका जीवन धन्य हो जाता है, क्योंकि मातृभूमि से बढ़कर कुछ नहीं होता । राष्ट्रीय गौरव से ही व्यक्ति गौरवान्वित होता है । जो देश पराधीन होता हैं, उस देश के वासी मृतवत् माने जाते हैं । इसलिए प्रत्येक देशवासी को अपने देश की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखने के लिए सर्वस्व का त्याग करने को सदैव तत्पर रहना चाहिए ।
प्रश्न 2. पुष्प की भाँति आपकी भी कोई अभिलाषा होगी। उन्हें दस वाक्यों में लिखिए ।
उत्तर – पुष्प की भाँति मेरी भी एक अभिलाषा है। मेरी अभिलाषा है कि पढ़-लिखकर मैं एक योग्य नागरिक बनूँ | योग्य नागरिक बनकर मैं किसी भी प्रकार देश की सेवा कर सकता हूँ। देश सेवा के लिये अनेक क्षेत्र हैं। गरीब बच्चों को पढ़ाना और उन्हें कमसे-कम साक्षर बना दिया जाय, यह आवश्यक है। जहाँ सरकार द्वारा कोई विकास का काम चल रहा हो, वहाँ जाकर देखना कि काम ठीक ढंग से हो रहा है या नहीं। यदि नहीं तो ठीकेदार से कहकर उचित ढंग से काम कराऊँगा । देश सेवा के अनेक काम है। इसके लिये कहीं काम खोजने की आवश्यकता नहीं ।
व्याकरण:
प्रश्न 1. 'भाग्य' शब्द के पहले सौ उपसर्ग लगाकर सौभाग्य शब्द बनाते हैं । इसी प्रकार निं, दुः, अन् उपसर्ग लगाकर प्रत्येक से दो-दो शब्द बनाइए ।
उत्तर :
नि: = निर्बल, निश्छल 
दुः = दुर्बल, दुष्प्रचार
अन् = अनधिकार, अनुपयोगी
पाठ से महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. पुष्प की अभिलाषा क्या है ? 
उत्तर – पुष्प की अभिलाषा उस रास्ते पर फेंके जाने की है, जिस रास्ते से वीर देशभक्त मातृभूमि के लिए लड़ने और अपने प्राण न्योछावर करने जाते हैं। 
प्रश्न 2. पुष्प सम्राटों के शव पर चढ़ाया जाना क्यों नहीं चाहता ? 
उत्तर – सम्राट के सम्मान में मृतक सम्राट पर फूल चढ़ाए जाते हैं । पुष्प की अभिलाष यह नहीं है कि वह सम्राट के शव पर रखा जाकर उसका सम्मान बढ़ाए। इस रूप में वह स्वयं को भी सम्मानित अनुभव नहीं करेगा ।
प्रश्न 3. पुष्प की अभिलाषा से क्या सीख मिलती है? 
उत्तर – पुष्प की अभिलाषा से सीख मिलती है कि मातृभूमि की सेवा से बढ़कर और कोई सेवा नहीं है।

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