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Bihar Board Class 9th History Chapter 6 Long Question Answer | NCERT Class 9 la itihas ki duniya Solution Chapter 6 | बिहार बोर्ड क्लास 9वीं इतिहास अध्याय 6 | वन्य समाज और उपनिवेशवाद | IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Class 9th History Chapter 6 Short Question Answer  NCERT Class 9 la itihas ki duniya Solution Chapter 6  बिहार बोर्ड क्लास 9वीं इतिहास अध्याय 6  वन्य समाज और उपनिवेशवाद  IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

प्रश्न 1. अठारहवीं शताब्दी में भारतीय जनजातियों के जीवन पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – भारत का लगभग 25 प्रतिशत भाग में वन हैं। इन वनों में निवास करनेवालों को आदिवासी कहा जाता है। भारत में इनकी आबादी अफ्रीका से थोड़ा ही कम है। आदिवासियों के जीवन को वनों से अलग कर नहीं देखा जा सकता। दोनों में प्रायः अन्योन्याश्रय सम्बंध है। इनकी अर्थव्यवस्था एवं संस्कृति वनों के साथ घुला - मिला है । भोजन, ईंधन, लकड़ी, घरेलू सामग्री, जड़ी-बूटी जैसी औषधियाँ, पशुओं के लिए चारा और कृषिगत औजारों के लिए ये वनों पर ही आश्रित हैं । ये अनेक वृक्षों की पूजा करते हैं और वन को देवता समझते हैं। नए पौधों के निकलने के समय ये उस क्षेत्र में पैर भी नहीं रखते। भोजन के लिए इन्हें फल और शिकार वनों से ही प्राप्त होते हैं। जल ये नदियों और झरनों से प्राप्त करते हैं। आवास के लिए पत्थर-मिट्टी, लकड़ी, बाँस, फूस वहाँ बहुतायद से उपलब्ध हैं। आदिवासी जनजाति के लोग अपने को वर्ग के आधार पर नहीं, बल्कि जातीय आधार पर अपने को संगठित कर रखा है। पहाड़िया, चेरो, कोल, उराँव, हो, संस्थाल, चुआर, खरिया, भील, मुंडा आदि इनकी मुख्य जातियाँ हैं। अठारहवीं शताब्दी के पहले तकं ये जनजातियाँ वन-सम्पदा को उपयोग अपने जीविकोपार्जन के लिए करनी थीं। ये बहुत सीधा-सादा तथा ईमानदार होते थे । ये अपने जीवन में किसी बाहरी हस्तक्षेप को सहन नहीं करते थे। थोड़े में ही निर्वाह इनकी आदत में सुमार था । लेकिन अंग्रेजों ने इनके जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया । शक्ति भर इन्होंने विरोध किया लेकिन बंदूक के आगे इन्हें झुकना पड़ा ।
प्रश्न 2. तिलका माँझी कौन थे? उन्होंने आदिवासी क्षेत्र के लिए क्या किया? 
उत्तर – तिलका माँझी एक संथाल नेता थे, इन्होंने न केवल अपने जमींदार का विरोध किया, बल्कि अंग्रेजों पर भी हिंसात्मक कार्रवाई की । तिलका माँझी का जन्म संथाल परगना क्षेत्र में सुल्तानपुर के निकट तिलकपुर गाँव में 1750 ई. में हुआ था ।
अंग्रेजों ने साहुकारों, ठेकेदारों, राजस्व, वन तथा पुलिस विभाग के अधिकारियों को आदिवासियों का शोषण करने के लिए उकसाया । इसका फल हुआ कि उपजाऊ भूमि गैर आदिवासियों को हस्तांतरित होने लगी। आदिवासी ऋण के बोझ तले दबते गए । इन आदिवासियों का आर्थिक आधार नष्ट भ्रष्ट हो गया और ये दरिद्रता का जीवन जीने को विवश हो गए।
इन सब बातों के चलते अब जमींदारों और साहूकारों के विरुद्ध विद्रोह आवश्यक हो गया था। विद्रोह का बिगुल फूँक दिया गया। इसके नेता तिलका माँझी थे। यह देश का पहला संथाल विद्रोह था। इस विद्रोह ने जमींदारों का तो विरोध किया ही, इनकी सहायता में आए अंग्रेजों का भी सशस्त्र विद्रोह किया । तिलका माँझी ने तिलकपुर जंगल के अपना कार्य क्षेत्र बनाया । यहाँ से वे विरोधियों पर आक्रमण की योजना बनाते थे । भागलपुर के पहले कलक्टर अगस्टस क्लैवलैंड पर सशस्त्र प्रहार किया । वे नहीं चाहते थे कि वन्य समाज और पहाड़ी क्षेत्र के जनजातीय समाज में कोई बाहरी हस्तक्षेप हो, उनका आर्थिक शोषण किया जाय और उनकी सामाजिक तथा धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाया जाय। कलक्टर पर पहली बार सशस्त्र आक्रमण करनेवाले वे पहले संस्थाल नेता थे । क्लेवलैंड की मृत्यु हो गई ।
तिलका माँझी को गिरफ्तार कर लिया गया और सन् 1785 में भागलपुर के बीच चौराहे पर एक बरगद के पेड़ पर लटकाकर फाँसी दे दी गई। तिलका माँझी अपने क्षेत्र की आजादी के लिए शहीद हो गए। उन्हीं के नाम पर उस चौक का नाम तिलका मॉझी चौक रखा गया और वहाँ पर उनकी एक मूर्ति स्थापित की गई है ।
प्रश्न 3. संथाल विद्रोह से आप क्या समझते हैं ? सन् 1857 ई० के विद्रोह में उसकी क्या भूमिका थी ?
उत्तर – 1855 में संथालों द्वारा किए गए विद्रोह को संस्थाल विद्रोह कहा जाता है । इस विद्रोह ने 1857 की क्रांति को भी प्रभावित किया था ।
भागलपुर और राजमहल के बीच का क्षेत्र संथाल बहुल क्षेत्र था । गैर आदिवासी एवं अंग्रेजों के अत्याचार से ऊबकर यहाँ के संथालों ने अपने को संगठित किया । सिद्धू, कान्हू, चाँद और भैरव नामक चार भाईयों ने विद्रोह का नेतृत्व किया । सिद्धू ने अपने को ठाकुर (राजा) का अवतार घोषित किया । 30 जून, 1855 को भगनाडीह गाँव में संथालों की एक सभा बुलाई गई । सभा में 400 गाँवों के 10,000 संथालों ने भाग लिया। सभी अस्त्र-शस्त्र से लैस थे। सभा में ठाकुर (सिद्धू) का आदेश पढ़कर सुनाया गया । आदेशमें लिखा था कि “जमींदारी, महाजनी तथा सरकारी अत्याचारों का विरोध किया जाय । अंग्रेजी शासन को समाप्त कर सतयुग का राज स्थापित किया जाय । न्याय और धर्म पर अपना राज कायम करने के लिए खुला विद्रोह किया जाय । सिद्ध और कान्हू ने स्वतंत्रता की घोषण भी कर दी। इस घोषण में कहा गया कि "अब हमारे ऊपर कोई 'सरकार नहीं है, हाकिम नहीं है, संथाल राज स्थापित हो गया है।" इन आदिवासियों ने गाँवों में जुलूस भी निकाले ।
शीघ्र ही लगभग 60 हजार संथाल एकत्र हो गए । जुलाई, 1855 को विद्रोह शुरू हो गया । इस सशस्त्र विद्रोह का आरंभ दीसी नामक स्थान से वहाँ के अत्याचारी दारोगा महेश लाल की हत्या से किया गया। सरकारी दफ्तरों, महाजनों के घर तथा अंग्रेजों की बस्तियों पर आक्रमण किया गया । वास्तव में आदिवासी गैर आदिवासी और उपनिवेशवादी सत्ता के शोषण के खिलाफ थे।
आदिवासियों के ऐसे संगठित विद्रोह से अंग्रेज डर गए। उन्होंने कलकत्ता तथा पूर्णिया से सेना बुलाकर विद्रोह को कुचल दिया । कान्हू सहित 5000 से अधिक संथाल मारे गए । संथालों के गाँव-के-गाँव उजाड़ दिए गए। सिद्धू के साथ अन्य नेता भी गिरफ्तार कर लिए गए।
यद्यपि संथालों ने इस विद्रोह में अदम्य साहस का परिचय दिया, किन्तु बन्दूकों के आगे पारम्परिक हथियार तीर-धनुष के साथ वे टिक नही सके । विद्रोह असफल हो गया। विद्रोह असफल तो हो गया, किन्तु पूर्णतः दबा नहीं। 1857 की क्रांति के समय संथालो ने विद्रोहियों का साथ दिया था ।
प्रश्न 4. मुंडा विद्रोह का नेता कौन था? औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध उसने क्या किया ?
उत्तर– ‘मुंडा विद्रोह' के नेता बिरसा मुंडा थे । इनका जन्म 15 नवम्बर, 1874 को पलामू जिले के तमाड़ के निकट उलिहातु गाँव में हुआ था। वे आदिवासियों की गरीबी से बहुत चिंतित रहा करते थे।
औपनिवेशिक शासन में भू-राजस्व प्रणाली, न्याय प्रणाली और शोषण की नीतियों के समर्थक जमींदारों के प्रति इनके मन में भारी आक्रोश था । ये एक धार्मिक किस्म के व्यक्ति थे और ईश्वर में इनका अटूट विश्वास था । अंग्रेजों के विरोध में ये किसी भी हद तक जाने को तैयार थे । समाज में स्थापित करने के लिए इन्होंने अपने को ईश्वर का दूत घोषित किया। अपने आन्दोलन की सफलता के लिए इन्होंने आदिवासियों को हथियार से लैस रहने की प्रेरणा दी । उन्हें इन्होंने उनके अपने अधिकारों के प्रति सजग किया । अपनी मुंडा जातियों के अलावे इन्होंने अन्य आदिवासियों को भी संगठित करना शुरू कर दिया । ईसाई मिशनरियाँ लालच देकर सीधे सादे आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराकर ईसाई बना रही थीं। उन्हें यह बुरा लगा । फलतः उन्होंने 25 दिसम्बर, 1899 से मिशनरियों पर आक्रमण करना आरम्भ कर दिया। उनका ख्याल था कि समाज-शोषक यहीं पर तैयार किए जाते हैं। स्कूल चलाना और दवा बाँटना तो एक बहाना है, ताकि समाज के अंदर तक घुस - पैठ बनाया जा सके । लेकिन अंग्रेज शासकों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और वे बिरसा के आक्रमणों का जबाव देने लगे। 8 जनवरी, 1900 को अंग्रेजों ने विद्रोह को दबा दिया। बहुत लोग मारे गए और उससे अधिक बन्दी बना लिए गए । बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के लिए इनाम की घोषण की गई। अपने लागों के धोखा के कारण बिरसा 3 मार्च, 1900 को गिरफ्तार कर लिए गए । कहते हैं कि रांची जेल के अंदर हैजा रोग से इनकी मृत्यु हुई थी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि काईंया फिरंगियों ने इनके भोजन में जहर मिला दिया। इसमें ठेकेदार जमींदार आदि भी शामिल थे । बिरसा मुंडा का आंदोलन समाप्त हो गया ।
प्रश्न 5. वे कौन-से कारण थे, जिन्होंने अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीति अपनाने के लिए बाध्य किया ?
उत्तर – वे कारण निम्नलिखित थे, जिन्होंने अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीति अपनाने के लिए बाध्य किया :
अंग्रेजों को अपने शासन-संचालन के लिए भवनों की आवश्यकता थी। उनकी छतों, दरवाजों, खिड़कियों, आलमारियों आदि के लिए उन्हें लकड़ी की आवश्यकता थी । यह वनों से ही प्राप्त हो सकते थे। मधु, गोंद, लाह, रेशम, औषधियों के लिए जड़ी-बूटियाँ वनों से ही प्राप्त हो सकते थे। इन्हीं लाभों के लिए अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीति अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। अंग्रेजों ने इन कामों को पूरा करने के लिए ठेकेदार नियुक्त किए, जो प्रायः साहूकार भी हुआ करते थे। ठेकेदार साहूकार जहाँ सफल नहीं हो पाते या भगा दिए जाते थे तो ये फिरंगी सेना की सहायता लेते थे । यह वह समय था जब इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति सफल हो रही थी। अंग्रेजों को अपने उपनिवेशों से कच्चे माल तथा तैयार माल के लिए बाजार की आवश्यकता थी । इसके लिए देश के कोने-कोने में रेल पहुँचाना आवश्यक था, ताकि कच्चा माल को बन्दरगाह तक पहुँचाने तथा बन्दरगाहों से तैयार माल बाजारों में शीघ्रतापूर्वक भेजे जा सकें। रेल की पटरियों के स्लीपर उस समय लकड़ी के ही बनते थे। डब्बे बनाने में भी लकड़ी की आवश्यकता थीं। रेलवे स्टेशन और उसके बाबुओं के निवास के लिए घर बनाना था। इन सब कार्यों के लिए काफी लकड़ी की आवश्यकता थी और यह वनों से प्राप्त हो सकती थी। लेकिन आदिवासी वनों के पेड़ नहीं काटने देना चाहते थे। पेड़ों को वे देवता मानते थे। ठेकेदारों को ये भगा दिया करते थे । फलतः आदिवासियों को दबाना आवश्यक हो गया था।
ये ही कारण थे, जिन्होंने अंग्रेजों को वन्य समाज में हस्तक्षेप की नीति अपनाने के लिए बाध्य कर दिया।

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